क्रांतिसूर्य की परछाई माता रमाई।।
आज दिनांक ७/२/२० हम सबके की माता मातोश्री रमाई भीमराव आंबेडकर इनकी १२२ वि. जयंती। मातोश्री रमाई का जन्म रत्नागिरी जिल्हे में स्तित वनन्द ये गांव मे ७/२/१८९८ में हुआ। आगे चल के १९०६ साल में उम्र के ८ वे साल रमाई माता का विवाह बाबासाहेब से हुआ। रमाई ,भारतीय महापुरुष बाबासाहब आम्बेडकर से विवाह कर करोडो भारतीयों की माता बनी। बाबासाहब के बारे में हम सबको काफी जानकारी हे, लेकिन माता रमाई के बारे में बहोत कम लोग जानते है। आज हम माता रमाई के बारे मई जानेंगे ।उनका जीवन मतलब समर्पण और त्याग का जीवित उदहारण है। इसी वजह से उनको त्यागमूर्ति रमाई भी कहा जाता है। विवाह से अपनी आखरी सास तक उन्होंने अपनी पूरी जिंदगानी बाबासाहब के लिए समर्पित करी। पतिनिष्टा ,पतिसेवा ,स्वाभिमान , त्याग ,समर्पण ,महिनत, करुणा, ये सारे गुण उनमे संमाये थे। पुरे समाज की जिम्मेदारी बाबासाहब के उप्पर थी उसमे रमाई ने कदम कदम पर बबासाहब को साथ दी। जब बाबासाहब विलायत को अपनी शिक्षा पूर्ण करने हेतु गए तब रमाई ने अनेक संकटो का सामना करते हुए घर की जिम्मेदारियां निभाई और कभी भी बाबासाहब से इसकी तकरार नहीं की।
रमाई को यह बात मालूम थी की बाबासाहब के उपर पुरे समाज की जिम्मेदारी है। उस वजह से उन्हे अपना ही नहीं बल्कि सारे समाज का भार उठाना है यहाँ माता रमाई जानती थी। विवाह के बाद कुछ साल बाद बाबासाहब के पिताजी सुभेदार रामजी बाबा का निधन हुआ। और उसके कुछ समय बाद आनद राव ,बाबासाहब के भाई का निधन हुआ ऐसे वक्त बाबासाहब के शिक्षा में खंड न पड़े और सामाज के उद्धार करने के कार्य में परिशानी न आने देते हुए सारी घर की जिम्मेदारी माता रमाई ने उठाई। कष्ट करके काम करके जो पैसे आते उसमे सब घर चलके जो पैसे बचते औ बाबासाहब के शिक्षा के लिए उन्हें रमाई माता भेज देती।काफी बार पैसो की काफी दिक्कत आती थी ऐसे समय कठिन परिस्तिति में जीवन जीते हुए उनको काफी बार भूका रहना पड़े।
फिर भी उन्होंने किसी के सामने हाथ नहीं फैलाये और आपना घर कष्ट करके चलाया।
एक बार रमाई बाबासाहब का बेटा गंगाधर बीमार गिरा तब उनके पास पैसे नहीं थे , इसकी वजह से डॉक्टर ने इलाज करने सी इंकार कर दिया। ऐसे वक्त माता रमाई को काफी मुश्किल आ गयी। यह चीज समाज के कुछ लोगो के कान पे गयी तब उन्होंने कुछ पैसे किये और माता रमाई के पास गए जब उन्होंने पैसे देने चाहे तब रमाई ने उनसे कहा "यह बात सही है की हमारा बेटा बीमार है ,लेकिन बाबासाहब यहाँ नहीं है और उनके पीछे मई आपसे पैसे नहीं ले सकती और उससे बहेतर यह है की यह पैसा अपने समाज के बच्चो के शिक्षा के लिए खर्च किये जाये। "
यह उदाहरण से उनका स्वाभिमान प्रतीत होता है ,कठिन परिस्तियो में जीवन कंठित करते हुए उनके बच्चे भी ज्यादा न जी सके और कम उम्र में ही गुजर गए। साथ ही उनके खुद के सेहत के तरफ भी ध्यान न देने की वजह से औ भी जल्दीही बीमार गिर गई। डॉकटर ने उन्हें आराम की सलाह दी। बाबासाहब ने उनकी आराम की सारी व्यवस्ता की लेकिन उनकी सेहत बिगड़ती ही गई। और उम्र के ३७ वे साल माता रमाई हम सबको छोड़के चली गयी।
बाबासाहब क्रांतिसूर्य हुवे,,तो माता रमाई उनकी परछाई बनी। समाज के सारी स्त्रियों के लिए माता रमाई का जीवन एक आदर्श उदहारण है। आज माता रमाई के १२२ वि जयंती पे उन्हें कोटि कोटि अभिवादन ।
माता रमाई के पर लिखी किताबे :-
himalayachi savli (click here)
Ramai (click here)
आज दिनांक ७/२/२० हम सबके की माता मातोश्री रमाई भीमराव आंबेडकर इनकी १२२ वि. जयंती। मातोश्री रमाई का जन्म रत्नागिरी जिल्हे में स्तित वनन्द ये गांव मे ७/२/१८९८ में हुआ। आगे चल के १९०६ साल में उम्र के ८ वे साल रमाई माता का विवाह बाबासाहेब से हुआ। रमाई ,भारतीय महापुरुष बाबासाहब आम्बेडकर से विवाह कर करोडो भारतीयों की माता बनी। बाबासाहब के बारे में हम सबको काफी जानकारी हे, लेकिन माता रमाई के बारे में बहोत कम लोग जानते है। आज हम माता रमाई के बारे मई जानेंगे ।उनका जीवन मतलब समर्पण और त्याग का जीवित उदहारण है। इसी वजह से उनको त्यागमूर्ति रमाई भी कहा जाता है। विवाह से अपनी आखरी सास तक उन्होंने अपनी पूरी जिंदगानी बाबासाहब के लिए समर्पित करी। पतिनिष्टा ,पतिसेवा ,स्वाभिमान , त्याग ,समर्पण ,महिनत, करुणा, ये सारे गुण उनमे संमाये थे। पुरे समाज की जिम्मेदारी बाबासाहब के उप्पर थी उसमे रमाई ने कदम कदम पर बबासाहब को साथ दी। जब बाबासाहब विलायत को अपनी शिक्षा पूर्ण करने हेतु गए तब रमाई ने अनेक संकटो का सामना करते हुए घर की जिम्मेदारियां निभाई और कभी भी बाबासाहब से इसकी तकरार नहीं की।
रमाई को यह बात मालूम थी की बाबासाहब के उपर पुरे समाज की जिम्मेदारी है। उस वजह से उन्हे अपना ही नहीं बल्कि सारे समाज का भार उठाना है यहाँ माता रमाई जानती थी। विवाह के बाद कुछ साल बाद बाबासाहब के पिताजी सुभेदार रामजी बाबा का निधन हुआ। और उसके कुछ समय बाद आनद राव ,बाबासाहब के भाई का निधन हुआ ऐसे वक्त बाबासाहब के शिक्षा में खंड न पड़े और सामाज के उद्धार करने के कार्य में परिशानी न आने देते हुए सारी घर की जिम्मेदारी माता रमाई ने उठाई। कष्ट करके काम करके जो पैसे आते उसमे सब घर चलके जो पैसे बचते औ बाबासाहब के शिक्षा के लिए उन्हें रमाई माता भेज देती।काफी बार पैसो की काफी दिक्कत आती थी ऐसे समय कठिन परिस्तिति में जीवन जीते हुए उनको काफी बार भूका रहना पड़े।
फिर भी उन्होंने किसी के सामने हाथ नहीं फैलाये और आपना घर कष्ट करके चलाया।
एक बार रमाई बाबासाहब का बेटा गंगाधर बीमार गिरा तब उनके पास पैसे नहीं थे , इसकी वजह से डॉक्टर ने इलाज करने सी इंकार कर दिया। ऐसे वक्त माता रमाई को काफी मुश्किल आ गयी। यह चीज समाज के कुछ लोगो के कान पे गयी तब उन्होंने कुछ पैसे किये और माता रमाई के पास गए जब उन्होंने पैसे देने चाहे तब रमाई ने उनसे कहा "यह बात सही है की हमारा बेटा बीमार है ,लेकिन बाबासाहब यहाँ नहीं है और उनके पीछे मई आपसे पैसे नहीं ले सकती और उससे बहेतर यह है की यह पैसा अपने समाज के बच्चो के शिक्षा के लिए खर्च किये जाये। "
यह उदाहरण से उनका स्वाभिमान प्रतीत होता है ,कठिन परिस्तियो में जीवन कंठित करते हुए उनके बच्चे भी ज्यादा न जी सके और कम उम्र में ही गुजर गए। साथ ही उनके खुद के सेहत के तरफ भी ध्यान न देने की वजह से औ भी जल्दीही बीमार गिर गई। डॉकटर ने उन्हें आराम की सलाह दी। बाबासाहब ने उनकी आराम की सारी व्यवस्ता की लेकिन उनकी सेहत बिगड़ती ही गई। और उम्र के ३७ वे साल माता रमाई हम सबको छोड़के चली गयी।
बाबासाहब क्रांतिसूर्य हुवे,,तो माता रमाई उनकी परछाई बनी। समाज के सारी स्त्रियों के लिए माता रमाई का जीवन एक आदर्श उदहारण है। आज माता रमाई के १२२ वि जयंती पे उन्हें कोटि कोटि अभिवादन ।
माता रमाई के पर लिखी किताबे :-
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